Lectionary Calendar
Sunday, February 23rd, 2025
the Seventh Sunday after Epiphany
There are 56 days til Easter!
Attention!
Tired of seeing ads while studying? Now you can enjoy an "Ads Free" version of the site for as little as 10¢ a day and support a great cause!
Click here to learn more!

Read the Bible

पवित्र बाइबिल

अय्यूब 13

1 सुनो, मैं यह सब कुछ अपनी आंख से देख चुका, और अपने कान से सुन चुका, और समझ भी चुका हूँ।2 जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ; मैं तुम लोगों से कुछ कम नहीं हूँ।3 मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूंगा, और मेरी अभिलाषा ईश्वर से वादविवाद करने की है।4 परन्तु तुम लोग झूठी बात के गढ़ने वाले हो; तुम सबके सब निकम्मे वैद्य हो।5 भला होता, कि तुम बिलकुल चुप रहते, और इस से तुम बुद्धिमान ठहरते।6 मेरा विवाद सुनो, और मेरी बहस की बातों पर कान लगाओ।7 क्या तुम ईश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे, और उसके पक्ष में कपट से बोलोगे?8 क्या तुम उसका पक्षपात करोगे? और ईश्वर के लिये मुकद्दमा चलाओगे।9 क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जांचे? क्या जैसा कोई मनुष्य को धोखा दे, वैसा ही तुम क्या उसको भी धेखा दोगे?10 जो तुम छिपकर पक्षपात करो, तो वह निश्चय तुम को डांटेगा।11 क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे? क्या उसका डर तुम्हारे मन में न समाएगा?12 तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं; तुम्हारे कोट मिट्टी ही के ठहरे हैं:

13 मुझ से बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊं; फिर मुझ पर जो चाहे वह आ पड़े।14 मैं क्यों अपना मांस अपने दांतों से चबाऊं? और क्यों अपना प्राण हथेली पर रखूं?15 वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तौभी मैं अपनी चाल चलन का पक्ष लूंगा।16 और यह भी मेरे बचाव का कारण होगा, कि भक्तिहीन जन उसके साम्हने नहीं जा सकता।17 चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी बिनती तुम्हारे कान में पड़े।18 देखो, मैं ने अपने बहस की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निर्दोष ठहरूंगा।19 कौन है जो मुझ से मुकद्दमा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप हो कर प्राण छोडूंगा।20 दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूंगा:21 अपनी ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर।22 तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूंगा; नहीं तो मैं प्रश्न करूंगा, और तू मुझे उत्तर दे।

23 मुझ से कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे।24 तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है?25 क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कंपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?26 तू मेरे लिये कठिन दु:खों की आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है।27 और मेरे पांवों को काठ में ठोंकता, और मेरी सारी चाल चलन देखता रहता है; और मेरे पांवों की चारों ओर सीमा बान्ध लेता है।28 और मैं सड़ी गली वस्तु के तुल्य हूं जो नाश हो जाती है, और कीड़ा खाए कपड़े के तुल्य हूँ।

 
adsfree-icon
Ads FreeProfile