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Tuesday, July 29th, 2025
the Week of Proper 12 / Ordinary 17
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Read the Bible

पवित्र बाइबिल

भजन संहिता 84

1 हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं!2 मेरा प्राण यहोवा के आंगनों की अभिलाषा करते करते मूर्छित हो चला; मेरा तन मन दोनों जीवते ईश्वर को पुकार रहे॥3 हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्वर, तेरी वेदियों मे गौरैया ने अपना बसेरा और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिस में वह अपने बच्चे रखे।4 क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे॥5 क्या ही धन्य है, वह मनुष्य जो तुझ से शक्ति पाता है, और वे जिन को सिय्योन की सड़क की सुधि रहती है।6 वे रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतों का स्थान बनाते हैं; फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है।7 वे बल पर बल पाते जाते हैं; उन में से हर एक जन सिय्योन में परमेश्वर को अपना मुंह दिखाएगा॥

8 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, हे याकूब के परमेश्वर, कान लगा!9 हे परमेश्वर, हे हमारी ढ़ाल, दृष्टि कर; और अपने अभिषिक्ति का मुख देख!10 क्योंकि तेरे आंगनों में का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है।11 क्योंकि यहोवा परमेश्वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं; उन से वह कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा।12 हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है!

 
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