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Saturday, November 23rd, 2024
the Week of Proper 28 / Ordinary 33
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पवित्र बाइबिल

उत्पत्ति 27

1 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आंखें ऐसी धुंधली पड़ गईं, कि उसको सूझता न था, तब उसने अपने जेठे पुत्र ऐसाव को बुला कर कहा, हे मेरे पुत्र; उसने कहा, क्या आज्ञा।2 उसने कहा, सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा:3 सो अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार ले कर मैदान में जा, और मेरे लिये हिरन का अहेर कर ले आ।4 तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना कर मेरे पास ले आना, कि मैं उसे खा कर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूं।5 तब ऐसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक ऐसाव से यह बात कह रहा था, तब रिबका सुन रही थी।

6 सो उसने अपने पुत्र याकूब से कहा सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई ऐसाव से यह कहते सुना,7 कि तू मेरे लिये अहेर कर के उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खा कर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहिले आशीर्वाद दूं8 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान,9 कि बकरियों के पास जा कर बकरियों के दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रूचि के अनुसार उन के मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊंगी।10 तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खा कर मरने से पहिले तुझ को आशीर्वाद दे।11 याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, सुन, मेरा भाई ऐसाव तो रोंआर पुरूष है, और मैं रोमहीन पुरूष हूं।12 कदाचित मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूंगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊंगा।13 उसकी माता ने उससे कहा, हे मेरे, पुत्र, शाप तुझ पर नहीं मुझी पर पड़े, तू केवल मेरी सुन, और जा कर वे बच्चे मेरे पास ले आ।14 तब याकूब जा कर उन को अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया।15 तब रिबका ने अपने पहिलौठे पुत्र ऐसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, ले कर अपने लहुरे पुत्र याकूब को पहिना दिए।16 और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया।17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी।

18 सो वह अपने पिता के पास गया, और कहा, हे मेरे पिता: उसने कहा क्या बात है? हे मेरे पुत्र, तू कौन है?19 याकूब ने अपने पिता से कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र ऐसाव हूं। मैं ने तेरी आज्ञा के अनुसार किया है; सो उठ और बैठ कर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे।20 इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया? उसने यह उत्तर दिया, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे साम्हने कर दिया।21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोल कर जानूं, कि तू सचमुच मेरा पुत्र ऐसाव है या नहीं।22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उसने उसको टटोल कर कहा, बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ ऐसाव ही के से जान पड़ते हैं।23 और उसने उसको नहीं चीन्हा, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। सो उस ने उसको आशीर्वाद दिया24 और उसने पूछा, क्या तू सचमुच मेरा पुत्र ऐसाव है? उसने कहा हां मैं हूं।25 तब उसने कहा, भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपने पुत्र के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूं। तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उसने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उसने पिया।26 तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम।27 उसने निकट जा कर उसको चूमा। और उसने उसके वस्त्रों की सुगन्ध पाकर उसको य़ह आशीर्वाद दिया, कि देख, मेरे पुत्र का सुगन्ध जो ऐसे खेत का सा है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो:28 सो परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे:29 राज्य राज्य के लोग तेरे आधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत करें: तू अपने भाइयों का स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत करें: जो तुझे शाप दें सो आप ही स्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें सो आशीष पाएं॥

30 यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे ही चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के साम्हने से निकला ही था, कि ऐसाव अहेर ले कर आ पहुंचा।31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बना कर अपने पिता के पास ले आया, और उस से कहा, हे मेरे पिता, उठ कर अपने पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे।32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, तू कौन है? उसने कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र ऐसाव हूं।33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर कांपते हुए कहा, फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैं ने तेरे आने से पहिले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? वरन उसको आशीष लगी भी रहेगी।34 अपने पिता की यह बात सुनते ही ऐसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे।35 उसने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया।36 उसने कहा, क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था: और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है: फिर उसने कहा, क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है?37 इसहाक ने ऐसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके आधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है: सो अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूं?38 ऐसाव ने अपने पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे: यों कह कर ऐसाव फूट फूट के रोया।39 उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पड़े॥40 और तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के आधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके।

41 ऐसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; सो उसने सोचा, कि मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूंगा।42 जब रिबका को अपने पहिलौठे पुत्र ऐसाव की ये बातें बताई गईं, तब उसने अपने लहुरे पुत्र याकूब को बुला कर कहा, सुन, तेरा भाई ऐसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन को धीरज दे रहा है।43 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा ;44 और थोड़े दिन तक, अर्थात जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना।45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध तुझ पर से उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहां से बुलवा भेजूंगी: ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से रहित होना पड़े?46 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?

 
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