the Week of Proper 28 / Ordinary 33
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पवित्र बाइबिल
1 राजा 21
1 नाबोत नाम एक यिज्रेली की एक दाख की बारी शोमरोन के राजा अहाब के राजमन्दिर के पास यिज्रेल में थी।2 इन बातों के बाद अहाब ने नाबोत से कहा, तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उस में साग पात की बारी लगाऊं; और मैं उसके बदले तुझे उस से अच्छी एक वाटिका दूंगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूंगा।3 नाबोत ने यहाब से कहा, यहोवा न करे कि मैं अपने पुरखाओं का निज भाग तुझे दूं!4 यिज्रेली नाबोत के इस वचन के कारण कि मैं तुझे अपने पुरखाओं का निज भाग न दूंगा, अहाब उदास और अप्रसन्न हो कर अपने घर गया, और बिछौने पर लेट गया और मुंह फेर लिया, और कुछ भोजन न किया।
5 तब उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उसके पास आकर पूछा, तेरा मन क्यों ऐसा उदास है कि तू कुछ भोजन नहीं करता?6 उसने कहा, कारण यह है, कि मैं ने यिज्रेली नाबोत से कहा कि रुपया ले कर मुझे अपनी दाख की बारी दे, नहीं तो यदि तू चाहे तो मैं उसकी सन्ती दूसरी दाख की बारी दूंगा; और उसने कहा, मैं अपनी दाख की बारी तुझे न दूंगा।7 उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उस से कहा, क्या तू इस्राएल पर राज्य करता है कि नहीं? उठ कर भोजन कर; और तेरा मन आनन्दित हो; यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी मैं तुझे दिलवा दूंगी।8 तब उसने अहाब के नाम से चिट्ठी लिखकर उसकी अंगूठी की छाप लगाकर, उन पुरनियों और रईसों के पास भेज दी जो उसी नगर में नाबोत के पड़ोस में रहते थे।9 उस चिट्ठी में उसने यों लिखा, कि उपवास का प्रचार करो, और नाबोत को लोगों के साम्हने ऊंचे स्थान पर बैठाना।10 तब दो नीच जनों को उसके साम्हने बैठाना जो साक्षी देकर उस से कहें, तू ने परमेश्वर और राजा दोनों की निन्दा की। तब तुम लोग उसे बाहर ले जा कर उसको पत्थरवाह करना, कि वह मर जाए।11 ईज़ेबेल की चिट्ठी में की आज्ञा के अनुसार नगर में रहने वाले पुरनियों और रईसों ने उपवास का प्रचार किया,12 और नाबोत को लोगों के साम्हने ऊंचे स्थान पर बैठाया।13 तब दो नीच जन आकर उसके सम्मुख बैठ गए; और उन नीच जनों ने लोगों लोगों के साम्हने नाबोत के विरुद्ध यह साक्षी दी, कि नाबोत ने परमेश्वर और राजा दोनों की निन्दा की। इस पर उन्होंने उसे नगर से बाहर ले जा कर उसको पत्थरवाह किया, और वह मर गया।14 तब उन्होंने ईज़ेबेल के पास यह कहला भेजा कि नाबोत पत्थरवाह करके मार डाला गया है।15 यह सुनते ही कि नाबोत पत्थरवाह करके मार डाला गया है, ईज़ेबेल ने अहाब से कहा, उठ कर यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी को जिसे उसने तुझे रुपया ले कर देने से भी इनकार किया था अपने अधिकार में ले, क्योंकि नाबोत जीवित नहीं परन्तु वह मर गया है।16 यिज्रेली नाबोत की मृत्यु का समाचार पाते ही अहाब उसकी दाख की बारी अपने अधिकार में लेने के लिये वहां जाने को उठ खड़ा हुआ।
17 तब यहोवा का यह वचन तिशबी एलिय्यह के पास पहुंचा, कि चल,18 शोमरोन में रहने वाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने को जा; वह तो नाबोत की दाख की बारी में है, उसे अपने अधिकार में लेने को वह वहां गया है।19 और उस से यह कहना, कि यहोवा यों कहता है, कि क्या तू ने घात किया, और अधिकारी भी बन बैठा? फिर तू उस से यह भी कहना, कि यहोवा यों कहता है, कि जिस स्थान पर कुत्तों ने नाबोत का लोहू चाटा, उसी स्थान पर कुत्ते तेरा भी लोहू चाटेंगे।20 एलिय्याह को देख कर अहाब ने कहा, हे मेरे शत्रु! क्या तू ने मेरा पता लगाया है? उसने कहा हां, लगाया तो है; और इसका कारण यह है, कि जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, उसे करने के लिये तू ने अपने को बेच डाला है।21 मैं तुझ पर ऐसी विपत्ति डालूंगा, कि तुझे पूरी रीति से मिटा डालूंगा; और अहाब के घर के एक एक लड़के को उौर क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल में हर एक रहने वाले को भी नाश कर डालूंगा।22 और मैं तेरा घराना नबात के पुत्र यारोबाम, और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूंगा; इसलिये कि तू ने मुझे क्रोधित किया है, और इस्राएल से पाप करवाया है।23 और ईज़ेबेल के विषय में यहोवा यह कहता है, कि यिज्रेल के किले के पास कुत्ते ईज़ेबेल को खा डालेंगे।24 अहाब का जो कोई नगर में मर जाएगा उसको कुत्ते खा लेंगे; उौर जो कोई मैदान में मर जाएगा उसको आकाश के पक्षी खा जाएंगे।25 सचमुच अहाब के तुल्य और कोई न था जिसने अपनी पत्नी ईज़ेबेल के उकसाने पर वह काम करने को जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपने को बेच डाला था।26 वह तो उन एमोरियों की नाईं जिन को यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से निकाला था बहुत ही घिनौने काम करता था, अर्थात मूरतों की उपासना करने लगा था।27 एलिय्याह के ये वचन सुनकर अहाब ने अपने वस्त्र फाड़े, और अपनी देह पर टाट लपेट कर उपवास करने और टाट ही ओढ़े पड़ा रहने लगा, और दबे पांवों चलने लगा।28 और यहोवा का यह वचन तिशबी एलिय्याह के पास पहुंचा,29 कि क्या तू ने देखा है कि अहाब मेरे साम्हने नम्र बन गया है? इस कारण कि वह मेरे साम्हने नम्र बन गया है मैं वह विपत्ति उसके जीते जी उस पर न डालूंगा पर न्तू उसके पुत्र के दिनों में मैं उसके घराने पर वह पिपत्ति भेजूंगा।